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Wednesday, June 3, 2009

जब यही जीना है दोस्तों तो फ़िर मरना क्या है

शहर की इस दौड़ में दौड़ के करना क्या है?

जब यही जीना है दोस्तों तो फ़िर मरना क्या है?

पहली बारिश में ट्रेन लेट होने की फ़िक्र है
भूल गये भीगते हुए टहलना क्या है?

सीरियल्स् के किर्दारों का सारा हाल है मालूम
पर माँ का हाल पूछ्ने की फ़ुर्सत कहाँ है?


अब रेत पे नंगे पाँव टहलते क्यूं नहीं?

108 हैं चैनल् फ़िर दिल बहलते क्यूं नहीं?

इन्टरनैट से दुनिया के तो टच में हैं,

लेकिन पडोस में कौन रहता है जानते तक नहीं.


मोबाइल, लैन्डलाइन सब की भरमार है,

लेकिन जिग्ररी दोस्त तक पहुँचे ऐसे तार कहाँ हैं?



कब डूबते हुए सुरज को देखा याद है?

कब जाना था शाम का गुज़रना क्या है?


तो दोस्तों शहर की इस दौड़ में दौड़् के करना क्या है

जब् यही जीना है तो फ़िर मरना क्या है?

ढाई अक्षरों की भाषा

ढाई अक्षरों की भाषा
जिन्दगी बन गई
ना तूने कुछ कहा
ना मैने कुछ सुना
चाँद भी चुपचाप देखता
सितारे भी टिमटिमाते रहे
आँखों की भाषा
एक दुसरे को पडते रहे
दूर खामोशी को
लफ्जों में समेटे रहे
अजीब मिलन था दो रूह का
हवाओं ने भी साथ दिया
खामोशी का दायरा ना तोड़ा
लफ्जो के कहे बिना
आँखों की भाषा ने जोड़ा

Tuesday, November 20, 2007

वो एक लड़की तुम ही तो हो

वो एक लड़की जो मेरी ग़ज़ल हैं
वो एक लड़की जो खिलती कमल हैं
वो एक लड़की जो ताज महल हैं
वो एक लड़की तुम ही तो हो


वो उसकी गेसू काली घटाएं
वो उसकी पलकों से लहराती हवाएं
वो उसकी यादें मेरी वफायें
वो एक लड़की तुम ही तो हो

वो उसकी आँखें चमकते मोती
वो उसकी पलकें आँखों को छूती
वो उसके गाल सेहरा-ए-मोती
वो एक लड़की तुम ही तो हो

वो उसके लब गुलाब जैसे
वो उसका माथा खुली किताब जैसे
उसकी मुस्कान से गिरते फूल जैसे
वो एक लड़की तुम ही तो हो

Friday, October 19, 2007

तुम दूर हो कर भी पास रहते हो

तुम दूर हो कर भी पास रहते हो
मेरे दिल मैं बसते हो मेरे साथ रहते हो

शब--तन्हाई एक - गहरे फूल बनती है
खुशबू बन कर तुम मेरे आँगन मैं महकते हो

तुम्हारी याद कि हिदत से जब जलता हैं मेरा दिल
तब तुम प्यार का सावन बन कर बरस जाते हो

जब भी कभी वह सुरमई आँखें उठती हैं
मेरा दिल मचलता हैं और तुम साँसे बन जाते हो

शब--हिज्र मैं चमकते माह--अंजुम
सब मंद पड़ते हैं जाना जब सामने तुम आते हो

तुम्हरे सर्द रवैये पर हाँ, जलता हैं मेरा दिल
क्यों खुद भी तड़पते हो और मुझको भी तड़पते हो

Sunday, September 23, 2007

प्यार छुपता नही छुपाने से.....

पूछ लो तुम भी इस ज़माने से,
प्यार छुपता नही छुपाने से,

पास आते हो, छुते हो, बात करते हो,
कभी मतलब से कभी बहाने से,

प्यार दिल में हैं, तो लाओ जबान पे,
आग बढती हैं ये बुझाने से,

तुम्हें न पाना शायद बेहतर हैं,
पा के फिर से तुम्हे गवाने से,

चलो एक दुआ तो अपनी पुरी हुई,
मिल लिए अपने एक दीवाने से,

रोये जाते हो, बस रोये जाते हो,
क्या होगा ये धन लुटाने से.

Friday, September 14, 2007

दर्द उठता है, तड़पता है ये दिल


दर्द उठता है, तड़पता है ये दिल
काश ऐसा हो कि, एक बार वो जायें मिल

दूर हूँ उनसे, मिलना है मुश्किल
ख्याली चेहरा, अदाएँ करें झिलमिल

अब तो उदासियाँ भी, भाग जाती हैं
आपकी याद में, हँसे दिल खिल-खिल

दिल को खुश रहने का, मिल गया सलीका
वर्ना गुजरती थी जिंदगी, बेबस तिल -तिल

महज एक नाम को पढ़कर, जुड़ गया दिल
जिस्म जरुरी नहीं, जब रूह से रूह जाए मिल

उनके नाम कई, करें रोज बातें
नाम से उनके हो जता है रोशन मेरा दिल

Saturday, September 8, 2007

तन्हाइयो का जहर पीना कैसा लगता है कोई हम से पूछे

तन्हाइयो का जहर पीना कैसा लगता है
कोई हम से पूछे
किसी की यादो मै खोये रहना कैसा लगता है
कोई हम से पूछे
कभी अकेले मै अपने आप ही हस देना कैसा लगता है
कोई हम से पूछे
कभी तन्हा बैठे बिठाये खुद ही रोलेना कैसा लगता है
कोई हम से पूछे
किसी के इन्तजार की बेचैनी मै तड़पते रहना कैसा लगता है
कोई हम से पूछे
ये जान कर भी की आने वाला आयेगा नही
उस की राहोन मे पलके बिछाये बैठना कैसा लगता है
कोई हम से पूछे
नीन्द तो ऑखो से कोसो मील दूर है
ये सोच कर रातो को तारे गीनना कैसा लगता है
कोई हम से पूछे
क्या पता अगली सुबह "उन" का दीदार नसीब हो यह सोच कर खुदा से दुआ मांगते रहना
की अभी दिन का उजाला हो जाये कैसा लगता है
कोई हम से पूछे....!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!॰

Thursday, September 6, 2007

ऐसी जगह पे आके बस गया हूँ दोस्तों

ऐसी जगह पे आके बस गया हूँ दोस्तों
बारिश का जहाँ कोई भी होता नहीं मौसम
पतझड़ हो या सर्दी हो या गर्मी का हो आलम
वर्षा की फुहारें हैं बस गिरती रहें हरदम

मिट्टी है यहाँ गीली, पानी भी गिरे चुप-चुप
ना नाव है काग़ज़ की, छप-छप ना सुनाई दे
वो सौंधी सी मिट्टी की खुशबू भी नहीं आती
वो भीगी लटों वाली, कमसिन ना दिखाई दे

इस शहर की बारिश का ना कोई भरोसा है
पल भर में चुभे सूरज, पल भर में दिखें बादल
क्या खेल है कुदरत का, ये कैसे नज़ारे हैं
सब कुछ है मगर फिर भी ना दिल में कोई हलचल

चेहरे ना दिखाई दें, छातों की बनें चादर
अपना ना दिखे कोई, सब लगते हैं बेगाने
लगता ही नहीं जैसे यह प्यार का मौसम है
शम्माँ हो बुझी गर तो, कैसे जलें परवाने