ऐसी जगह पे आके बस गया हूँ दोस्तों
बारिश का जहाँ कोई भी होता नहीं मौसम
पतझड़ हो या सर्दी हो या गर्मी का हो आलम
वर्षा की फुहारें हैं बस गिरती रहें हरदम
मिट्टी है यहाँ गीली, पानी भी गिरे चुप-चुप
ना नाव है काग़ज़ की, छप-छप ना सुनाई दे
वो सौंधी सी मिट्टी की खुशबू भी नहीं आती
वो भीगी लटों वाली, कमसिन ना दिखाई दे
इस शहर की बारिश का ना कोई भरोसा है
पल भर में चुभे सूरज, पल भर में दिखें बादल
क्या खेल है कुदरत का, ये कैसे नज़ारे हैं
सब कुछ है मगर फिर भी ना दिल में कोई हलचल
चेहरे ना दिखाई दें, छातों की बनें चादर
अपना ना दिखे कोई, सब लगते हैं बेगाने
लगता ही नहीं जैसे यह प्यार का मौसम है
शम्माँ हो बुझी गर तो, कैसे जलें परवाने
Most of things are compiled and collected from other sources except few articles
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